Wednesday, November 25, 2020

No Depression

दुनिया भर में अवसाद की समस्या गंभीर होती जा रही है। अमरीका में तो यह समस्या काफी जटिल हो चुकी है। एक बड़ी आबादी का नींद के लिए दवा लेनी पड़ती है। भारत में भी अवसाद के रोगी तेजी से बढ़ रहे हैं, जो वाकई चिंता की बात है। इसलिए हर स्तर पर सजगता जरूरी है। अवसाद का पहला लक्षण उदासी है। उदास तो सभी होते हैं, लेकिन जब कोई लंबे समय तक उदास नजर आए, तो उसे संभालने की जरूरत है। अवसाद से ग्रस्त व्यक्ति का किसी भी काम में दिल नहीं लगता । ऐसा आदमी छोटी-छोटी चीजों से प्रभावित हो जाता है। उसे लगता है कि लोग उसकी जान-बूझकर उपेक्षा कर रहे हैं। वह बहुत शक्की हो जाता है। उसे या तो भूख कम लगती है या फिर वह बहुत ज्यादा खाता है। उसे बुरे-बुरे खयाल आते हैं। वह निराशावादी हो जाता है। आत्महत्या के विचार आने लगते हैं। उसे समझाना भी मुश्किल होता है।

कहावत है, 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीता अपने आस-पास यदि किसी व्यक्ति में अवसाद के लक्षण नजर आएं, तो उसकी मदद जरूर करें। इसे जड़ से खत्म करने की कोशिश कीजिए। इसके लिए खुद अवसादग्रस्त व्यक्ति को भी कोशिश करनी होगी। कोई भी बीमारी को ठीक करने में प्रकृति, मन और सोच का बहुत ज्यादा महत्त्व है। सबसे पहले तो हमें यह विश्वास करना चाहिए कि हम ईश्वर की संतान हैं। इससे मन में आत्मविश्वास पैदा होगा। हानि हो या लाभ, मानसिक संतुलन बना रहे। शुरू में बहुत बड़ा लक्ष्य निर्धारित न करें। छोटे छोटे गोल सेट करो और उनको प्राप्त करने की कोशिश करो। इससे अवसाद से ग्रस्त व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ेगा। रोजाना एक-आध घंटे वह काम जरूर करें, जिसमें आपकी रुचि हो। नकारात्मक लोगों से दूरी बनाकर रखें। आपमें कमियां निकालने वालों से दूर रहें। सकारात्मक सोच वाले लोगों के साथ रहें। ऐसे लोगों के साथ रहें, जो आपका उत्साह बढ़ाते हों। उनके साथ रहें, जो खुद भी आगे बढ़ते हों और अपने साथ दूसरों को भी आगे बढ़ाते हों। इस बात को मन में बैठा लें कि जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। इनसे घबराएं नहीं। निस्वार्थ रूप से लोगों की मदद करो, जिससे खुशी मिलेगी। इससे इस बीमारी से निकलने में मदद मिलेगी। रोजाना वर्क आउट जरूर करें। इसके लिए जिम जाने की जरूरत नहीं है। ऐसा खेल जरूर खेलें, जिससे पसीना आए। अपने मन पर किसी भी तरह का वजन न रखें। किसी भी लक्ष्य को लेकर इतना फिक्रमंद न हों कि यदि वह लक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ तो जैसे पहाड ही टूट पड़ेगा। यह सोचें कि जो हो रहा है, सब ठीक हो रहा है और आगे भी सब ठीक होगा। दुनिया की सचाई तो यह है कि 'जिसका मन मस्त है. उसके पास समस्त हैं। इस दुनिया में कोई भी परफेक्ट नहीं होता। यह स्वीकार करना चाहिए कि अमुक चीज हमें नहीं आती। लगातार सीखते रहना चाहिए। ज्यादा सोच-विचार न करें। खुश रहने की कोशिश करें। जो भी आपके पास है, वह पर्याप्त है। पैसे के पीछे न भागें। अहंकार से बचें।

Monday, November 16, 2020

रत्नों की पोटली

पात्रता प्रत्येक व्यक्ति को पैदा करनी पड़ती है। यह शिक्षा का और विशेषकर गुरु का पहला कार्य होता है। इसी प्रकार प्रकृति की हर सृष्टि में चार वर्ण कहे गए हैं- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। यह हर प्राणी में, पशु-पक्षी में और कुदरत की हर वस्तु में पाए जाते हैं। जौहरी भी जानते हैं कि हर बहुमूल्य पत्थर भी इन चार वर्णों में पाया जाता है। ज्योतिष में भी इसके प्रमाण देखे जा सकते हैं। इन वर्गों का जाति से कोई संबंध नहीं है। ये तो आत्मा के संस्कारों के गुण हैं। इसी के अनुसार व्यक्ति शिक्षा ग्रहण कर सकता है। इसी प्रकार कोई बुद्धिजीवी होता है और कोई हृदयजीवी। मोटे तौर पर पुरुष बुद्धिजीवी और स्त्रियां हृदयजीवी रूप होते हैं।

दोनों की जीवन-धारा भिन्न होती है। इसलिए इनकी शिक्षा भी भिन्न होनी चाहिए। यदि पुरुष को भाव-प्रधान और स्त्री को बुद्धि-प्रधान शिक्षा दी जाएगी तो दोनों का जीवन अंतर्द्वन्द्व में ही बीत जाएगा। वे समाज या राष्ट्र को कुछ दे ही नहीं पाएंगे। न ही वे अपने प्राकृतिक स्वरूप को कभी पहचान पाएंगे।

हम शिक्षा से समाज और राष्ट्र का निर्माण और विकास करना चाहते हैं तो पहली आवश्यकता है- व्यक्ति का निर्माण। आज की शिक्षा से यह कार्य नहीं हो सकता। व्यक्तिपरक शिक्षा से 'वसुधैव कुटुम्बकम्' कैसे फूटेगा?

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